आखिर क्यों जगन्नाथ जी को करना पड़ा युद्ध | जगन्नाथ कथा
आखिर क्यों जगन्नाथ जी को करना पड़ा युद्ध जगन्नाथ कथा |
जगन्नाथ कथा - हरे कृष्णा विश्व के लगभग तमाम धर्मों में ईश्वर को परमपिता परमेश्वर माना गया है कुछ धर्म और संप्रदाय उन्हें निराकार और दिव्य ज्योति के रूप में पूजते हैं लेकिन वैदिक सभ्यता में ईश्वर को साकार और व्यक्तित्व के रूप में माना जाता है परमेश्वर केवल एक आध्यात्मिक प्रकाश की आभा ही नहीं है अपितु वह हमारे जीवन के अभिन्न अंग है जिनके साथ हमारा कोई ना कोई रिश्ता जुड़ा हुआ है चाहे वह माता पिता के रूप में हो या सत्व के रूप में रखा के तौर पर पुत्र के रूप में या फिर प्रेमी के रूप में वैदिक संस्कृति में ईश्वर की केवल पूछा ही नहीं की जाती अपितु उनके साथ अंतरंग संबंध जोड़ने की बात कही जाती है
और जहां ऐसा अंतरंग संबंध जुड़ा हुआ हो वहां भगवान अपने भक्तों के रणी हो जाते हैं वैसे तो भगवान श्री कृष्ण भक्तों के साथ की गई अपनी लीलाओं के लिए जाने जाते हैं लेकिन आप सोच रहे होंगे यह तो द्वापर युग की अनेक सालों पुरानी बात है क्या इस कलयुग में भी भगवान अपने भक्तों के साथ आदान-प्रदान करते हैं जी हां क्यों नहीं इस कलयुग के कुल देवता भगवान जगन्नाथ जी द्वारा अपने भक्तों के साथ की गई असल की लीलाओं की चर्चा आज भी उनके भक्तों के मुख से सुनी जा सकती है तो चलिए आज हम आपको भगवान जगन्नाथ जी द्वारा उनके महान भक्त के साथ की गई मधुलिका का आस्वादन कर आते हैं किस प्रकार भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं इस बात का अनुभव आज आप इस कथा में कर पाएंगे तो चलिए
अब हम सीधा आपको लेकर चलते हैं ओडिशा राज्य में जहां अनेक वर्षो पूर्व एक महान राजा राज्य करता था उसका नाम था राजा पुरषोत्तम देव जी राजा भगवान जगन्नाथ जी का अनन्य भक्त था इतना विनम्र था कि प्रतिवर्ष जब रथ यात्रा का आयोजन किया जाता तो राजा स्वयं भगवान जगन्नाथ जी के रथ के समक्ष झाड़ू मारता वह वास्तव में भगवान जगन्नाथ को ही उसके राज्य का राजा मानता था और स्वयं को उनका तुझसे वर्क समझता था एक समय की बात है राजा पुरषोत्तम देव दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान कांची राज्य में जा पहुंचे वहां के उद्यानों में उन्होंने अपना पड़ाव डाला हुआ था अब हुआ यूं कि उसी समय कांची राज्य की राजकुमारी पद्मावती भी वहां आ पहुंचे राजा पुरषोत्तम देव और राजकुमारी पद्मावती की भेंट हुई
और दोनों ने एक-दूसरे को पसंद किया जब कांच के राजा को पुरुषोत्तम देवकी आगमन का समाचार मिला तो उन्होंने सम्मान के साथ अपने राजभवन में उनका अतिथि सत्कार किया रांची के राजा और रानी दोनों ही पुरुषोत्तम देव की विनम्रता चरित्र और गुणों को देखकर प्रभावित हुए उन्होंने अपनी पुत्री राजकुमारी पद्मावती का विवाह राजा पुरषोत्तम देव से करवाने का प्रस्ताव रखा इस प्रस्ताव को राजा पुरुषोत्तम देव ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और वापस अपने राज्य में लौट आए कुछ समय बाद कांची के राजा ने अपने मंत्री को अधिकृत विवाह प्रस्ताव लेकर उड़ीसा राज्य में भी जा वहां राजा पुरषोत्तम देवी द्वारा कांची राज्य के मंत्री का समुचित सत्कार किया गया
और क्योंकि वह रथ यात्रा का ही समय था इसलिए राजा पुरषोत्तम देव ने मंत्री से आग्रह किया कि वह कुछ दिन और रुक जाए और रथ यात्रा में सम्मिलित हूं मंत्री ने सोचा कि इतने बड़े पर्व में सम्मिलित होने का यह सुनहरा अवसर है इसलिए वह तुरंत मान गए रथयात्रा के दिन एक बड़ा ही विचित्र घटना हुई चलिए देखते हैं क्या रथयात्रा के पावन पर्व के दिन भगवान जगन्नाथ बलदेव और सुभद्रा देवी को मंदिर से बाहर निकाल कर रख पर आसीन करवाया गया चारों तरफ सनकी सनकी तुम पूछ रही थी हजारों लाखों लोग इस भव्य रथ यात्रा का दर्शन करने आए हुए थे ढोल नगाड़े और शंख बज रहे थे बताए लहरा रही थी चारों ओर देवता और हर्षोल्लास का मंगलमय वातावरण छाया हुआ था इन सबके बीच कांची राज्य के मंत्री ने देखा कि उड़ीसा राज्य का राजा पुरषोत्तम देव इस रथ यात्रा उत्सव में भगवान के रथ के समक्ष हाथ में झाड़ू लेकर खड़ा था
और यह देखकर कांची राज्य के मंत्री का सिर आश्चर्य से टकरा गया उसने सोचा कि एक राजा होते हुए भी यह मार्ग में सफाई का काम कर रहा है हालांकि राजा पुरषोत्तम दे इस कार्य के माध्यम से भगवान जगन्नाथ के प्रति अपनी भक्ति और विनम्रता को प्रदर्शित कर रहे थे लेकिन मंत्री यह बात समझ नहीं पाया उसने इस बात को कांची राज्य के राजा का अपमान समझा और तुरंत वहां उड़ीसा राज्य को छोड़कर अपने राज्य में वापस आ गया काशी राज्य में आकर उसने यह सारा वृतांत अपने राजा को कह सुनाया और अंत में कहा हमारी राजकुमारी पद्मावती का विवाह एक ऐसे व्यक्ति के साथ कैसे किया जा सकता है जोकि मार्ग में झाड़ू मारने का कार्य कर रहा हूं अब मंत्री की बात सुनकर राजा स्वयं भी आश्चर्य में पड़ गया उसने इस कार्य के पीछे राजा पुरषोत्तम देव का क्या भाव था यह सोचे समझे बिना ही मंत्री की सलाह पर राजा पुरषोत्तम देव से अपनी पुत्री का विवाह तोड़ने की निश्चय कर दिया राजा ने एक दूध से राजा पुरुषोत्तम देव को संदेश भेजा कि जो व्यक्ति एक चांडाल की तरह मार्ग में सफाई का कार्य कर रहा हो उसके साथ में अपनी पुत्री का विवाह नहीं कर सकता और इतना ही नहीं कांची के राजा ने अपनी पुत्री पद्मावती के लिए तुरंत एक स्वयंवर का भी आयोजन कर दिया
और उड़ीसा के राजा पुरुषोत्तम देव के सिवाय बाकी सभी राज्यों के राजाओं को आमंत्रित किया इस बात का सबसे ज्यादा दुख राजा पुरुषोत्तम देव और राजकुमारी पद्मावती को लगा इस अपमान का बदला लेने के लिए राजा पुरुषोत्तम देव ने काशी के राजा के साथ युद्ध की घोषणा कर दी अब यहां रोचक बात यह है कि काशी का राजा गणेश जी का बहुत बड़ा भक्त था और युद्ध शुरू करने से पहले उसने राजा पुरषोत्तम देव के समक्ष एक शर्त रखी और वह शर्त यह थी कि इस युद्ध में अगर कांची का राजा हारेगा तो उसके कुल देवता गणेश जी की मूर्ति को पूरी में ले जाकर जगन्नाथ बलदेव और पीछे रखा जाएगा
और अगर ओडिशा के राजा पुरषोत्तम जाते हैं तो उनके आराध्य देव जगन्नाथ बलदेव और सुभद्रा को कांची के राजभवन में गणेश जी के पीछे स्थापित किया जाएगा इस शर्त के साथ युद्ध आरंभ हुआ लेकिन अचानक ही राजा पुरषोत्तम देवास और शस्त्र में आग लग गई परिणाम स्वरुप चिंतित हो उठे कि कहीं उन्हें हार स्वीकार करके अपने प्रिया आराध्य देव से दूर ना होना पड़े इस चिंता के कारण राजा ने भगवान जगन्नाथ को प्रार्थना की हे भगवान जगन्नाथ कृपया मेरी सहायता करें हे नाथ मैं आपके जाति के समक्ष झाड़ू मार रहा था केवल इसी बात को देखकर कांची के राजा थे मेरा विवाह तोड़ दिया था
अगर इस युद्ध में पराजित होंगे तो वह आपकी भी हार होगी आप तो जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ है फिर आप गणेश जी के विक्रय के पीछे कैसे विराजमान हो सकते हैं जब राजा ने अदरा बानी से प्रार्थना की तो उसी रात भगवान जगन्नाथ के स्वप्न में आए और उन्होंने कहा हे राजन घबराओ मत दोबारा जाओ और युद्ध करो इस बार मैं स्वयं तुम्हारी सहायता करने आऊंगा भगवान जगन्नाथ की मधुर वाणी से आश्वस्त होकर राजा फिर से कांची राज्य पर युद्ध करने के लिए निकल पड़ा लेकिन इस बार का युद्ध थोड़ा अलग था युद्ध के लिए निकली हुई राजा की सेना में दो मुख्य सैनिक थे क्योंकि राजा की सेना को पीछे छोड़कर सबसे आगे चल रहे थे
उसमें से एक सैनिक काले घोड़े पर सवार था और दूसरा सैनिक सफेद घोड़े पर जा रहा था ऐसा लग रहा था मानो यह दोनों सैनिक राजा के विजय की पताका लहराते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे गर्मी का समय था यह दोनों प्रमुख सैनिक स्कूल का तालाब तक पहुंच चुके थे और सेना अभी कुछ अंतर पीछे थी गर्मी के कारण दोनों सैनिकों को प्यास लग रही थी और तभी उन्होंने सामने से एक वृद्ध ग्वालन को आते हुए देखा क्योंकि अपने मटके में छाछ भरकर बेचने के लिए जा रही थी उसका नाम था मणिका दोनों सैनिकों ने उसे रोका और पूर्ण संतुष्टि होने तक उसकी सारी छाछ पी ली तृप्त होने के बाद दोनों ओं सैनिक फिर से घोड़े पर चढ़कर युद्ध में जाने की तैयारी करने लगे और तभी
उस ग्वालन मणिका ने उन दोनों को रोका और छाछ के बदले में पैसे मांगे यह दोनों तो सिपाही थे उनके पास तो पैसे थे नहीं तो उन्होंने उस वृद्ध स्त्री को कहा देखिए माता हम तो राजा के सैनिक हैं और हम युद्ध के लिए जा रहे हैं हमारे पास तो पैसे नहीं है यह सुनकर व वृद्ध को आनंद रोने लगी और कहने लगी कि अब वह अपने परिवार को क्या खिलाएगी यह बात सुनकर काले घोड़े पर आए हुए सैनिक ने उस वृद्ध स्त्री को अपनी हीरे की अंगूठी निकाल कर दी और उसे कहा यह लो माता आप यह रख लो अभी कुछ ही समय में हमारे राजा इसी मार्ग से अपने साइन के साथ आएंगे आप उनसे इस जांच का मूल्य ले लेना इतना कहकर वे दोनों सैनिक वहां से चले गए
अब यहां दूसरी ओर यह व्रत मणिका राजा की जाती हुई उसी मार्ग पर बैठी रही कुछ समय बाद राजा अपने सैनिकों के साथ आया तो उस वृद्ध ग्वालन ने राजा को रोककर कहा हे राजा तुम्हारे दो सैनिक अभी कुछ समय पहले ही यहां से गए हैं एक काले घोड़े पर था और दूसरा सफेद घोड़े पर उन दोनों ने मेरे सारे छाछ पी ली थी और यह अंगूठी देकर कहा था कि मेरी छाछ का मूल्य मैं तुमसे बस करो अब मुझे अपने पैसे दे दो जिससे कि मैं अपने परिवार का पेट भर सके मणिका द्वारा दी गई उस अंगूठी को देखा तो आश्चर्य और प्रसन्नता के कारण उनकी आंखों से आंसू प्रवाहित होने लगे राजा ना कुछ बोल पाए और ना ही मणिका को उसकी छाछ का मूल्य चुका पाए उनके आश्चर्य और अभाव का कारण यह था कि वह अंगूठी कोई साधारण अंगूठी नहीं थी लेकिन उनके कुलदेवता साक्षात भगवान जगन्नाथ जी की नवरत्न की अंगूठी थी
इसे देखकर राजा की वाणी यह सोचकर गदगद हो उठे कि भगवान स्वप्न में दिए हुए अपने वचन को पूरा करने के लिए स्वयं सैनिक बनकर मेरी सहायता करने आए हैं और काले घोड़े पर सवार व सैनिक और कोई नहीं लेकिन स्वयं भगवान जगन्नाथ थे और सफेद घोड़े पर सवार हो सैनिक स्वयं बलराम थे यह सोचकर राजा की आंखों से हर्ष के आंसू प्रवाहित होने लगे उन्होंने मणिका से कहा हे माता आप सच में अत्यंत पुणे शादी है और भगवान भी जो आपको साक्षात भगवान जगन्नाथ और बलदेव के दर्शन हुए अवश्य आऊंगा गांव दान में दे दिए जीवन भर अपने परिवार का पालन पोषण कर सकती है इतना ही नहीं हुई थी उस स्थान पर राजा ने एक गांव की स्थापना की जिसे मानिक नाम दिया गया और आज भी उड़ीसा में भगवान जगन्नाथ की साक्षी रहा है
इसके पश्चात राजा पुरषोत्तम देव युद्ध के लिए कांच की ओर निकल पड़े कांची और उड़ीसा दोनों राज्य के राजाओं और उनके सैनिक के बीच घमासान युद्ध हुआ दोनों पक्ष के सैनिकों ने बहादुरी पूर्वक श्रुति लड़ा लेकिन कांची के राजा ने देखा कि राजा पुरषोत्तम देव की सेना में इस बार 2 नए सैनिक थे जिसमें से एक काले घोड़े पर शत्रुओं का संहार कर रहा था तो दूसरा सफेद घोड़े पर सूट कर रहा था इन दोनों सैनिकों के रूप में आए हुए स्वयं भगवान जगन्नाथ और बलराम ने ऐसा अप्रतिम युद्ध किया कि कोई भी उन्हें हरा नहीं पाया अंत में राजा पुरषोत्तम देवकी की जीत हुई और कांची के राजाबुरी तरह से हार गए युद्ध के बाद अनुसार कांची के राजा के कुलदेवता गणेश जी के पुरी में भगवान जगन्नाथ के पीछे स्थापित किया गया
जिसे आज भी आप जगन्नाथ पुरी मंदिर के प्रांगण में देख सकते हैं राजा पुरषोत्तम देव ने युद्ध में हारे हुए कांची के राजा के उनके पुत्री राजकुमारी पद्मावती को कैद किया और उसका विवाह मार्ग में झाड़ू मारने वाले करवाने का निर्णय किया उन्होंने तुरंत अपने मंत्री को बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि अति शीघ्र ही एक युवक की खोज की जाए और राजकुमारी का विवाह संपन्न करवाया जाए यह सुनकर राजकुमारी पद्मावती अत्यंत दुखी हुई यह जानते थेके राजा पुरुषोत्तम देव उनके पिता के प्रति प्रतिशोध की भावना से कार्य कर रहे थे
लेकिन राजा पुरुषोत्तम देव के प्रति उनका प्रेम तो विशुद्ध था जब कांची के राजा ने उनका स्वयं निश्चित किया था उस समय भी वो ऑपरेशन में थी लेकिन राजा पुरुषोत्तम देव इस बात से अनजान थे इस निर्णय से सभी लोग दुखी थे उन्होंने मंत्री को आदेश दिया था लेकिन उनके मंत्री अत्यंत चतुर और समझदार थे राजकुमारी पद्मावती की स्थिति को जानते थे इस समस्या का समाधान निकालने के लिए उन्होंने राजकुमारी पद्मावती के लिए योग्य झाड़ू मारने वाला युवक होने में कुछ समय लगेगा इसलिए राजा को थोड़ी प्रतीक्षा करनी चाहिए यह कहकर मंत्री राजकुमारी पद्मावती को अपने घर ले गए और उन्हें आश्रय प्रदान किया राजकुमारी पद्मावती यह सोच कर अत्यंत दुखी रहती थी उनके भाग्य में ओडिशा के महारानी राजा की सेविका बना नहीं लिखा अपने भाग्य पर रोते हुए मंत्री के घर में अपने दिन व्यतीत करने लगी काल केकाल के चक्र को उगते हुए ज्यादा समय नहीं लगता
रथ यात्रा का उत्सव नजदीक आने लगा राज्य में चारों और हर प्रकार की तैयारियां होने लगी संपूर्ण राज्य जैसे उत्सव की खुशी में झूम रहा था सिवाय राजकुमारी पद्मावती के राजकुमारी पद्मावती अपने भाग्य को दोष देते हुए अत्यंत दुखी रहती थी एक दिन मंत्री राजकुमारी के पास आते हैं और उन्होंने राजकुमारी को कहां हे राजकुमारी आज आप सभी अलंकारों से युक्त होकर तैयार हो जाइए अपने सबसे सुंदर वस्त्रों को धारण करके आइए क्योंकि आज आपका विवाह होने वाला है यह सुनकर राजकुमारी पद्मावती फूट फूट करिए सोच कर रोने लगी कि अब उसे अपना संपूर्ण जीवन एक झाड़ू मारने वाले व्यक्ति के घर में व्यतीत करना पड़ेगा राजकुमारी को आश्वस्त करते हुए मंत्री ने कहा राजकुमारी जी आप चिंता ना करें भगवान जगन्नाथ जी पर आश्रित रहें अवश्य आपकी सहायता करेंगे
इतना कहकर मंत्री वहां से चले गए सभी स्त्रियों ने राजकुमारी पद्मावती को अत्यंत सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से नववधू के रूप में तैयार किया और उन्हें पालकी में बिठाकर स्थान पर ले जाया गया जहां भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा के रथ यात्रा पर सवार होकर निकलने की तैयारी में थे रथ यात्रा के कारण सभी मार्ग में लोगों की भीड़ लगी हुई थी चारों और हरि नाम संकीर्तन चल रही थी ढोल नगाड़े बज रहे थे रथ यात्रा शुरू होने की तैयारी थी उसी समय राजा पुरषोत्तम देव हाथ में स्वर्ण का झाड़ू लेकर भगवान जगन्नाथ जी के रथ के समक्ष आते औरत का मार्ग साफ करने लगते हैं जैसे राजा मार्ग की सफाई कर रहे हैं वैसे वैसे उनका मन भगवान जगन्नाथ के प्रति भक्ति भाव से प्रफुल्लित हो रहा है
अंत में जब राजा ने इस कार्य को संपन्न किया तो मंत्री राजकुमारी पद्मावती को लेकर राजा पुरषोत्तम देव के पास आए उन्होंने बड़ी चतुराई से राजा से कहा हे राजन जैसा कि मैंने आपको वचन दिया था कि राजकुमारी पद्मावती के लिए अवश्य झाड़ू मारने वाले युवक को निकाल लूंगा तो मैं आपको यह शुभ समाचार देना चाहता हूं कि मैंने ऐसा युवक ढूंढ लिया है यह सुनकर राजा ने कहा बहुत अच्छा किया लेकिन अभी मेरे पास इन सब बातों के लिए कोई समय नहीं आज रथयात्रा है इसलिए आपको जो योग्य लगे वैसा करिए राजा की बात सुनकर मंत्री ने बड़ी विनम्रता से कहा परंतु हमारे प्रिय राजा साफ करने वाले युवक को राजकुमारी पद्मावती के लिए ढूंढ निकाला है और कोई नहीं लेकिन आप स्वयं है राजन मंत्री के चतुराई और व्यवहार कुशलता से अत्यंत आश्चर्य चकित हुए राजा पुरषोत्तम देव
मंत्री के सामने देखने लगे मंत्री ने हाथ जोड़कर आगे कहा हे राजन आपने मुझे राजकुमारी पद्मावती के लिए मार्ग साफ करने वाले किसी युवक को ढूंढने के लिए कहा था और आज अभी-अभी आपने भगवान जगन्नाथ के रथ के समक्ष झाड़ू मारने का कार्य किया है इसलिए मैंने राजकुमारी पद्मावती के लिए आप का चयन किया है इतना कहकर मंत्री ने राजकुमारी पद्मावती को राजा के गले में वरमाला डालने के लिए कहा राजकुमारी ने जब राजा को वरमाला पहनाई तो राजा ने प्रसन्नता पूर्वक उसका स्वीकार किया मंत्री के छोरे पर राजा पुरषोत्तम देव अत्यंत प्रसन्न हुए
और उनकी प्रशंसा की नगर की जनता हर्षोल्लास व्यक्त करने लगी और सबसे अधिक प्रसन्नता राजकुमारी पद्मावती को हुई क्योंकि आखिरकार भगवान जगन्नाथ ने उनकी सहायता की थी और उनकी दुख में स्थिति से उन्हें मुक्त किया था इस प्रकार जगन्नाथ की कृपा से ना सिर्फ राजा पुरषोत्तम देव के आत्मसम्मान की रक्षा हुई लेकिन साथ ही राजकुमारी पद्मावती की इच्छा को पूरा करने में भी भगवान जगन्नाथ जी ने उन्हें सहायता की यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं किंतु एक सत्य घटना है इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि आज भी जगन्नाथ पुरी मंदिर के प्रांगण में जहां भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा जी विराजमान है उनके पीछे एक और छोटा मंदिर है जहां से गणेश जी के विक्रय की स्थापना की गई है उनके ठीक सामने रोहिणी कुंड विद्यमान है
और आज भी रथयात्रा के दिन पूरी के राजा भगवान जगन्नाथ जी के रथ के समक्ष झाड़ू मारने की परंपरा का यथारूप पालन करते दिखाई देते हैं अगर भगवान के ऊपर पूर्ण श्रद्धा और ह्रदय में शुद्ध प्रेम हो तो भगवान किसी भी परिस्थिति में किसी भी स्वरूप में आपकी सहायता करने अवश्य आते हैं और जो भक्त सच्चे हृदय से उनका आह्वान करें तो फिर स्वयं भगवान भी अपने आप को नहीं रोक पाते भगवान जगन्नाथ की दिव्य लीलाओं की ऐसी ही रस से भरी और अत्यंत मधुर कथाओं का आस्वादन करने के लिए हमारे साथ इस यात्रा में बने रहे और website को सब्सक्राइब करने से हमारे साथ जुड़े रहना आपके लिए और आसान हो जाएगा हरे कृष्णा
इसे जरूर पढ़ें - पिरामिड की ये बातें हैरान कर देगीं|10 Fascinating Facts about the Egyptian Pyramids|Pyramids of Giza
Post a Comment