ताजमहल के मंदिर होने के ये रहे सबूत| taj mahal hindu temple proof|Taj Mahal is Hindu temple not tomb

ताजमहल के मंदिर होने के ये रहे सबूत
ताजमहल के मंदिर होने के ये रहे सबूत 

भारतीय इतिहास के पन्नों पर ताजमहल को प्यार का प्रतीक बताया गया है कहा जाता है कि शाहजहां ने ताजमहल को अपनी पत्नी मुमताज की याद में बनवाया था क्योंकि वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे जिसकी मौत हो गई थी लेकिन कुछ इतिहासकार इन सभी तथ्यों को गलत बताते हैं उनका मानना है कि ताजमहल के निर्माण को लेकर इतिहास में गलत बातें लिखी गई हैं और ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बल्कि यह पहले से बना एक हिंदू मंदिर था 

जिसे इस्लामिक रूप दिया गया प्रसिद्ध शोधकर्ता और इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपने शोध पूर्ण पुस्तक में तथ्यों के जरिए ताजमहल के इस रहस्य से पर्दा उठाया आइए जानते हैं ताजमहल के अविश्वसनीय रहस्य के बारे में

इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश को अपने ताजमहल के निर्माण को लेकर अपनी पुस्तक में लिखा है कि शाहजहां ने ताजमहल में लूटी हुई दौलत छुपाई थी इसलिए ताजमहल को कब्र के तौर पर प्रचलित किया गया उनके मुताबिक अगर ताजमहल मुमताज को दफनाने के लिए बनाया गया होता तो उसे शाहिद के साथ किस दिन दफनाया गया इसका उल्लेख इतिहास के पन्नों पर लिखा जाता लेकिन मुमताज को कब और किस दिन दफनाया गया इसका उल्लेख कहीं नहीं किया गया है

 शोध के मुताबिक माना जाता है कि शाहजहां ने मुमताज को दफनाने के बहाने आमेर के राजा जयसिंह पर दबाव डालकर उनके महल यानी ताजमहल पर कब्जा कर लिया और खजाना हड़प कर सब से निकले माली पर छुपा दिया माना जाता है कि वो खजाना आज जो खाते हो वहीं पर पड़ा है शाहजहां के लिए मुमताज कोई मायने नहीं रखती थी क्योंकि ना तो मुमताज उसकी पहली पत्नी थी और ना ही शाहजहां के जीवन में उसका कोई खास योगदान था शाहजहां के महल में हजारों सुंदर स्त्रियां थी वह किसी एक पत्नी की मौत का हिसाब क्यों रखेगा एक तथ्य यह भी है कि शाहजहां ने मुमताज के जीते जी कोई महल नहीं बनवाया तो उसके मरने के बाद ताजमहल जैसी भव्य इमारत क्यों बनाएगा

मुमताज़ की मौत 1531 में बुरहानपुर के बुलारा महल में हुई थी और उन्हें वहीं दफना दिया गया था लेकिन उसके छह महीने बाद राजकुमार शाह शुजा की निगरानी में मुमताज के शरीर आगरा लाया गया था आगरा के दक्षिण में मुमताज का शरीर अस्थाई तौर पर दफन किया गया था और कुछ समय बाद आखिरकार उसे ताजमहल में दफना दिया गया शोधकर्ता पुरुषोत्तम के अनुसार क्योंकि शाहजहां ने मुमताज को दफन करने का स्थान इतना सुंदर बनवाया था इसलिए इतिहासकार भी मानने लगे कि वह सच में मुमताज से बेइंतहा मोहब्बत करता था उन्होंने ताजमहल को प्रेम का प्रतीक लिखना शुरू कर दिया

 आपको यह जानकर हैरानी होगी कि शाहजहां के बादशाह बनने के करीब 2:30 या 3 साल बाद मुमताज की मौत हो गई थी इतिहास में उन दोनों के प्रेम के बारे में कोई उल्लेख नहीं है सच यह है कि शाहजहां और मुमताज की प्रेम को लेकर अंग्रेजी शासनकाल में इतिहासकारों ने मनगढ़ंत करना कि जिन्हें भारतीय इतिहासकारों ने विस्तार से लिख दिया शोध के मुताबिक ताजमहल परिसर में अतिथि गृह पहले दारू के लिए कक्ष और पशुशाला भी है लेकिन सवाल यह उठता है कि मृतक इंसान के लिए इन सब चीजों को बनाने की क्या जरूरत थी

 क्योंकि ताजमहल तो मुमताज को दफनाने के लिए बनाया गया था इतिहासकार पुरुषोत्तम अपने सबूतों के आधार पर अपनी किताब में ताजमहल के हिंदू मंदिर होने का दावा किया उन्होंने लिखा है कि ताजमहल में मंदिर होने के कई सबूत मौजूद हैं ताजमहल की मुख्य गुंबद के किरीट पर जो गलत है वह हिंदू मंदिर की तरह दिखता है हिंदू मंदिरों के शिखर पर स्वर्ण कलश स्थापित करने की परंपरा है जिसकी मान्यता आज भी है इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632  शुरू हुआ था और लगभग 1653 में पूरा हुआ यहां सोचने वाली बात यह है कि जब मुमताज़ की मौत 1631 को हो गई थी तो फिर उन्हें उसी साल कैसे दफनाया जा सकता था क्योंकि उस समय तो ताजमहल बना ही नहीं था था

 ताज महल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू हुआ था शोध के मुताबिक 1632 में हिंदू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का काम शुरू हुआ 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें प्राची कई इतिहासकार ओक ने अपनी किताब में लिखा है कि जय मंडल क्यों नहीं मुमताज़ की मौत के 7 साल बाद वॉइस एंड ट्रैवल्स इन टुडे इज नाम से निजी पर्यटन के स्मरण में आगरा का उल्लेख किया है लेकिन उसमें ताजमहल के निर्माण के बारे में कोई जानकारी नहीं है

 अगर सच में 20000 मजदूर 22 साल तक ताजमहल का निर्माण करते तो मंडल लो अपनी शरण में उस विशाल कार्य का उल्लेख जरूर करते हमारे योगशाला में ताज महल के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन जांच से पता चलता है कि वह लकड़ी जहां काल से 300 साल पहले की है सोचने वाली बात यह भी है कि कब्र को महल क्यों कहा गया इस पर किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया होगा ताजमहल पहले से नहीं था और उससे कब्र का में बदल दिया गया

 शाहजहां से गलती हो गई क्योंकि उसने कब्र का बदलते वक्त उसका नाम नहीं बदला उस समय के किसी भी सरकारी या शाही दस्तावेज और अखबार में भी ताजमहल शब्द का जिक्र नहीं आया है वही जो लोग ताजमहल को ताजमहल समझते हैं बिल्कुल गलत है इतिहास का रुख लिखते हैं कि महल मुस्लिम शब्द नहीं है और ईरान अफगानिस्तान जैसी जगहों पर एक भी मस्जिद या कब्र ऐसी नहीं है जिनके नाम के पीछे लगाया गया हो यह बिल्कुल गलत है कि मुमताज के नाम पर ताज महल का नाम पड़ा है क्योंकि मुमताज का पूरा नाम अर्जुन बानो बेगम था

 ताज महल मुमताज के नाम पर रखा गया है अपनी किताब में लिखते हैं कि 5230 में आगरा का महल में अपने जीवन से मुक्ति पाई वाटिका महल कोई और नहीं बल्कि ताजमहल ही था इतना बड़ा और भव्य था उसके जैसा कोई दूसरा महल भारत में नहीं था बाबर की पुत्री गुलबदन ने मायू नामा नामा ऐतिहासिक विवरण में ताजमहल को मिस्टिक हाउस का नाम दिया ओक लिखते हैं कि प्राप्त सबूतों के आधार पर ताजमहल का निर्माण राजा परम देव देव के शासनकाल में अश्विन शुक्ल पंचमी को हुआ था ताजमहल आज के बाद से कई गुना बड़ा था गुंबद हुआ करते थे

 शोध कार्य से पता चलता है कि ताजमहल को पहले तेजो महल कहा जाता था वर्तमान में ताजमहल से ऐसे 703 खोजे गए हैं तो बताते हैं कि वह पहले मंदिर था और बाद में इसे दोबारा बजाएं गया इसकी कई मीनारें काशी बाद के काल में बनवाई गई वास्तुकला के विश्वकर्मा वास्तु शास्त्र में शिवलिंग का वर्णन आता है ताजमहल में तेज प्रतिष्ठित था इसलिए उसका नाम तेजो महालय पड़ा था मुमताज के मकबरे वाले कमरे में ही शिव मंदिर का गर्भगृह था संगमरमर की जाली पर 108 चित्र थे और हिंदू परंपरा के मुताबिक 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है तेजो महालय को नाग नागेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता था

 क्योंकि यह मंदिर नाथद्वारा लिपटा हुआ प्रतीत होता था माना जाता है कि प्राचीन काल में आगरा को कहा जाता था क्योंकि यह अंगिरा ऋषि की तपोभूमि थी और अंगिरा ऋषि भगवान शिव के उपासक थे प्राचीन काल से ही आगरा में पांच मंदिर थे जिनमें पृथ्वीनाथ वालकेश्वर मनकामेश्वर और राजराजेश्वर शामिल हैं वही जो पांचवा मंदिर सदियों पहले कब्र के रूप में बदल गया था वह निश्चित रूप से नाग नागेश्वर मंदिर था इतिहासकारों की पुस्तक में इस बात का भी जिक्र किया है कि ताजमहल के बगीचे में काले पत्थरों का एक मंडप था उन्हीं में से एक पत्थर पर राजा परम देव के मंत्री संरक्षण में एक शिलालेख लिखा था

कृति शिव मंदिर बनाए जाने का उल्लेख किया गया था यह शिलालेख आज भी लखनऊ के वास्तु म्यूजियम की तीसरी मंदिर पर रखा हुआ है शाहजहां ने ताजमहल में जो तोड़फोड़ का काम करवाया था उसका एक सूत्र ताल 1874 में आके लॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वार्षिक वृद्धि के चौथे खंड में भेज दो 16 और 17 में प्रकाशित है उन पन्नों पर लिखा गया है कि हाल में आगरा के वास्तु म्यूजियम के आंगन में जो चौक उठा काले बस्तर का खंबा खड़ा है वह खंभा और उसी तरह का दूसरा स्तंभ उसका शिखर और चबूतरे कभी ताजमहल के बगीचे में प्रस्तावित है

 इससे साबित होता है कि लखनऊ के वास्तु म्यूजियम में जो शिलालेख है वह कभी ताजमहल के बगीचे में मौजूद थे वहीं संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई है उनके रंग में पीलापन है जबकि बाकी पूरा पत्थर अच्छी गुणवत्ता वाला है यह इस बात का सबूत है कि कुरान की आयत वाले पत्थर बाद में लगाए गए हैं आज के दक्षिण में एक प्राचीन पशुशाला है जहां तेजो महालय कि फालतू गायों को बांधा जाता था और मुस्लिम कब्र में गौशाला होना ना हजम होने वाली बात है वही ताजमहल में चारों तरफ एक समान चार प्रवेश द्वार है जो हिंदू भवन निर्माण का तरीका है 

इन्हें चतुर्मुखी भवन कहा जाता है ताजमहल में आवाज गूंजने वाला गुंबद है जो हिंदू मंदिरों में गुण पैदा करने वाले गुंबद होते हैं ताजमहल का गुंबद कमल के आकार का बना है और हजारों हिंदू मंदिर कमल की आकृति वाले होते हैं शाहजहां के काल में यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख ताजमहल के नाम से किया है जो कि शिव मंदिर वाले परंपरागत नाम तेजो महालय से मिलता-जुलता है लेकिन शाहजहां और औरंगजेब ने बड़ी सावधानी से संस्कृत से मेल खाते शब्द का कहीं पर भी प्रयोग नहीं किया है इस जब की जगह पवित्र मकबरा शब्द प्रयोग किया गया

इतिहासकार पुरुषोत्तम ओ के अनुसार पहले से बनी ताजमहल के भीतर मुमताज की लाश दिखाई गई थी और शाहजहां ने मुमताज को दफनाने के बाद ताज का निर्माण नहीं करवाया था दोस्तों यह थे कुछ रहस्यमय तक ताजमहल के निर्माण को लेकर यह तथ्य कितनी सही है इसका प्रमाण कोई नहीं दे सकता हालांकि इतिहासकारों के शोध गलत होने के भी कोई प्रमाण नहीं है हर हमें खुश होना चाहिए कि ताजमहल जैसी इमारत दुनिया के सात अजूबों में से एक है आज के लिए बस इतना ही  इसी आर्टिकल से आपको कुछ जानकारी मिली है तो इस आर्टिकल को अपने सोशल अकाउंट में जरूर शेयर करें 

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