नालंदा विश्वविद्यालय को एक मुस्लिम ने क्यों जलाया? Nalanda University Real History & Story in Hindi
नालंदा विश्वविद्यालय को एक मुस्लिम ने क्यों जलाया Nalanda University Real History & Story in Hindi |
नालंदा विश्वविद्यालय - छठी शताब्दी में हिंदुस्तान सोने की चिड़िया कहलाता था यह सुनकर यह मुस्लिम आक्रमणकारी आते रहते थे इनमें से एक तरफ तुर्की का शासक एक दयालु दीन मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी उस समय हिंदुस्तान पर खिलजी का ही रास्ता नालंदा यूनिवर्सिटी राजगीर का एक उपनगर हुआ करती थी यह राजगीर से पटना को जोड़ने वाली रोड पर स्थित है यह पढ़ने वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स विदेशी थे उस वक्त यहां 10000 छात्र पढ़ते थे जिन्हें 2000 शिक्षक गाइड किया करते थे महायान बौद्ध धर्म के इस विश्वविद्यालय में ज्ञान बौद्ध धर्म के साथ ही दूसरे धर्म को भी शिक्षा दी जाती थी
मशहूर चीनी यात्री हेनसांग ने भी 1 साल की शिक्षा ग्रहण की थी यह की ऐसी पहली यूनिवर्सिटी थी जहाज रहने के लिए हॉस्टल भी था जी हां हम बात कर रहे हैं नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में तुर्की की शक्तियां खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगा दी थी कहा जाता है कि विश्वविद्यालय में इतनी पुस्तकें थी कि पूरे 6 महीनों तक यह के पुस्तकालय में आग धधकती रही उसमें अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु को को भी मार डाला था
खिलजी ने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्जा भी कर लिया था इतिहासकार विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने की पीछे जो वजह बताते हैं उसके अनुसार एक समय बख्तियार खिलजी बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया था उसके वकीलों ने इसके काफी उपचार भी किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ तब उसे नालंदा विश्वविद्यालय की आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी के उपचार कराने की सजा दी गई उसने आचार्य राहुल को बुलवा लिया तथा इलाज से पहले शर्त लगा दी कि वह किसी हिंदुस्तानी दवाई का सेवन नहीं करेगा
उसके बाद भी उसने कहा कि अगर वह ठीक नहीं हुआ तो आचार्य की हत्या करवा देगा यह सोचकर आचार्य राहुल श्रीभद्र सोच में पड़ गए फिर कुछ सोचकर उन्होंने खिलजी की सारी शर्तें मान ली कुछ दिनों बाद मुख्य जी के पास एक कुरान लेकर पहुंचे और उन्हें कहा कि जितना आप इस कुरान को पढ़ सकते हैं पढ़िए मैं गारंटी देता हूं आपको कि आप ठीक हो जाएंगे दरअसल राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों पर एक दवा का लेप लगा दिया था खिलजी थूक लगा लगा कर पलट गए और इसी तरीके से धीरे-धीरे करके ठीक होने लगे
लेकिन पूरी तरह ठीक होने के बाद भी उसने हिंदुस्तानी वैदिक इंसानों को भुला दिया उसे इस बात से जलन होने लगी कि उसके हकीम फेल हो गए जबकि एक हिंदुस्तानी वैदिक उसका इलाज करने में सफल हो गया तब खिलजी ने सोचा कि क्यों न ज्ञान की इस पूरी जड़ नालंदा यूनिवर्सिटी नालंदा विश्वविद्यालय को खत्म कर दिया जाए इसके बाद उसने जो किया उसके लिए इतिहास उसे कभी भी माफ नहीं करेगा
के मारे खिलजी ने नालंदा यूनिवर्सिटी में आग लगाने का आदेश दे दिया कहा जाता है कि यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में इतनी सारी किताबें थी कि 3 से 4 महीने तक तो आती रही उसे बुझाना मुश्किल हो गया था इसके बाद भी किसी का मन शांत नहीं हुआ उसने नालंदा की हजारों धार्मिक लिए दर्शकों की हत्या करवा दी बाद में को जलाने का भी आदेश उसने दे दिया
इस विश्वविद्यालय में तीन प्रमुख पुस्तकालय थे प्रतिरोध यदि रत्न सागर रत्न रंजक एक पुस्तकालय तो कहा जाता है कि नोटों का हुआ करता था यानी कि उस लाइब्रेरी में टोटल फ्लोर थे तीनों पुस्तकालयों में लगभग लाखों की गिनती ओं में पुस्तकें जमा थी लेकिन अपनी भावना के चलते खिलजी ने ना ही सिर्फ नालंदा पुस्तकालय को चलाया वह के बौद्ध धर्म के जितने भी थे वहां पर पढ़ने वाले छात्र और बहुत सारे चिकित्सकों को भी मरवा दिया इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया जापान चीन तिब्बत इंडोनेशिया फारस तुर्की और भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे
नालंदा के विशिष्ट शिक्षा प्राप्त बाहर जाकर बौद्ध धर्म के साथ ही अन्य ज्ञान का प्रचार भी किया करते थे नालंदा में बौद्ध धर्म के अतिरिक्त शब्द विद्या चिकित्सा शास्त्र तथा संबंधित विषय भी पढ़ाए जाते थे ने लिखा था कि विद्यालयों में से ऐसे थे जो सूत्र और शास्त्र जानते थे तथा ऐसे थे जो अन्य विश्व में परंपरागत थे और 20 से 50 वर्षों में अपने आप में महारत हासिल की हुई थी कि बद्री ऐसे थे जिनकी सभी विषयों में समान गति थी इस विश्वविद्यालय की चौथी सदी तक अंतरराष्ट्रीय रही थी
लेकिन बख्तियार खिलजी ने इतनी बड़ी गलती की उसके लिए हिंदुस्तान कभी भी इस बख्तियार खिलजी को माफ नहीं करेगा 99 जलाकर नष्ट कर दिया था लेकिन इस कांड में हजारों जल कर राख हो गई हो गए अध्यापकों ने अपने कपड़ों में छुपा कर कई दुर्लभ पांडुलिपियों को बचाया तथा उनकी ओर ले गए कर्मियों ने क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया या खिलचीपुर था उसने ताकत के मध्य में बंगाल पर अधिकार के बाद तिब्बत और चीन पर अधिकार की कोशिश की किंतु इस प्रयास में उसकी सेना नष्ट हो गई
अधूरी हालत में उसे देव को लाया गया उसमें ही सहायक अनुदान निखिल जी की हत्या कर दी थी बख्तियारपुर खिलजी को दफन किया गया था वह जगह पीर बाबा का मजार बन गया है दुर्भाग्य से कुछ मुर्ख हिंदू भी उस लुटेरे आनंद को जलाने वाले की मजार पर मन्नत मांगने जाते हैं नालंदा विश्वविद्यालय को काफी हद तक बचाया जा चुका है लेकिन वह ज्ञान जो 34 से 11 वीं शताब्दी में यहां बच्चों को दिया जाता था यानी कि शिक्षा ग्रहण करने आते थे उन्हें दिया जाता था शायद आज जहां नहीं मिलता होगा तो दोस्तों नालंदा विश्वविद्यालय का एक छोटा सा इतिहास
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