भारत के चार धाम विस्तृत जानकारी दी गयी है | चार धाम यात्रा जीते जी क्यों कर लेना चाहिए - Bharat Ke Char Dham
भारत के चार धाम के बारे में बहुत से लोगों को गलतफहमी है चार धाम के नाम पर लोग बदरीनाथ केदारनाथ गंगोत्री और यमुनोत्री का नाम जानते हैं जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है भारतीय धर्म ग्रंथों में बद्रीनाथ द्वारका जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम की चर्चा चार धाम के रूप में की गई है चार धाम यात्रा क्यों की जाती है इसकी कोई निश्चित मान्यता नहीं है लेकिन यह बात सत्य है की चार धाम यात्रा पापों से मुक्त करती है और साथ ही मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है
तो आइए सबसे पहले आपको बताते हैं चार धाम में से एक बद्रीनाथ मंदिर के बारे में (badrinath dham)
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बद्रीनाथ मंदिर |
बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है या मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर नर और नारायण नामक पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित प्राचीन शैली में बनाइए विशाल मंदिर 15 मीटर ऊंचा है यमन तीन भागों में बटा हुआ है यानी गर्ग के दर्शन मंडप और सभा मंडप और मंदिर के अंदर 15 मूर्तियां स्थापित है जिम में से भगवान विष्णु की 1 मीटर ऊंची कार्य पत्थर की प्रतिमा है इस मंदिर को धरती का बैकुंठ कहा जाता है इसी वजह से यहां बहुत से श्रद्धालु हर साल पहुंचते हैं माना जाता है कि यह प्रतिमा भगवान की सबसे शुभ स्वयं प्रकट मूर्तियों में से एक है इस मंदिर की स्थापना और नाम को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह भूमि भगवान shiv की थी परंतु भगवान विष्णु को अपने ध्यान योग के लिए एक भूमि चाहिए थी इसलिए उन्होंने बच्चे का रूप धारण करके रोना शुरू कर दिया उनको बता दे माता पार्वती और शिव जी उनके पास है और पूछ रहा है कि तुम्हें क्या चाहिए तो उन्होंने शिवजी से केदार भूमि मामले दूसरी कथा है कि एक बार देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु से रूठ गई तब भगवान विष्णु ने उन्हें मनाने के लिए तपस्या करने लगे जब हम ध्यान के दौरान भगवान खराब मौसम से अनजान थे तब देवी लक्ष्मी ने पत्नी धर्म निभाते बद्री के पेड़ का आकार ग्रहण कर लिया और खराब मौसम से भगवान विष्णु को बचाने के लिए अपनी शाखाओं से ढक लिया ऐसे ही इस जगह का नाम बद्रीनाथ पड़ा इस स्थान के बारे में यह हमारे साथी है कि जो यहां के दर्शन कर लेता है वह जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है बद्रीनाथ धाम की मान्यता यह भी है कि बद्रीनाथ में भगवान शिव जी को एवं हत्या से मुक्ति मिली थी इस घटना की याद दम कपार नाम से जानी जाती है दम कपाल एक ऊंची शीला है जहां पितरों का श्राद्ध अर्पण किया जाता है माना जाता है कि यहां श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिल जाती है
तो आइए बात करते हैं चार धाम में से दूसरे स्थान पर द्वारकाधीश मंदिर के बारे में(dwarkadhish dham)
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द्वारकाधीश मंदिर |
भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर के किनारे पर गुजरात में बसा हुआ है भगवान कृष्ण का निवास स्थान भगवान कृष्ण शासित राज्य के अलावा भगवान विष्णु ने भी यहां शंखासुर नामक राक्षस को मारा था द्वारका की स्थापना के पीछे भी एक कहानी है जब भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा के राजा कंस का वध किया सरस्वती जरासंध ने और यारों का नाश करने की ठान लिया अपना बदला लेने के लिए वह मथुरा और यादों पर बार बार आक्रमण करते रहे इस वजह से ही यादों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने मथुरा को छोड़ने का निर्णय लिया और सभी के लिए एक नई नगरी बसाने को सोचा है भगवान श्री कृष्ण ने द्वारकापुरी की स्थापना का निर्देश विश्वकर्मा को दिया जिन्होंने एक ही रात में इस नदी का निर्माण पूरा कर दिया उसके बाद श्री कृष्ण अपने सभी यादव बंधुओं के साथ द्वारकापुरी चले गए श्री कृष्ण द्वारकापुरी पर 36 वर्ष तक शासन किया और जब श्री कृष्ण ने बैकुंठ प्रस्थान किया है तो भगवान की नगरी स्वतंत्र समुद्र में डूब गई और केवल श्रीकृष्ण का मूल मंदिर ही बचा रहा कहा जाता है कि आज भी उस नगरी की ओर से समुद्र के भीतर मौजूद परंतु इस पर भी अलग मत है कहा जाता है ki नगरी के डूब जाने पर श्री कृष्ण के पोते वज्रनाभ के मुख्य मंदिर का निर्माण कराया जो कि 25 वर्ष पुराना है यमन देश सात मंजिला मंदिर है जिसके दो दरवाजे हैं जिनका नाम है स्वर्गद्वार और मुख्य द्वार इस मंदिर की ऊंचाई करीब 157 फीट है और इस मंदिर के ऊपर एक शिखर है जो 43 मीटर ऊंचा है इसके ऊपर एक विशाल ध्वज लगा हुआ है जिस पर सूर्य और चंद्रमा बने हुए इस ध्वज की खासियत यह है कि यह इतना बड़ा है कि इसे 10 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता है इस ध्वज को दिन में तीन बार बदला जाता है
तो आइए अब बात करते हैं अगले धाम की जिसका नाम है रामेश्वरम (rameshwaram dham)
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रामेश्वरम |
रामेश्वरम मंदिर तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है यह पवित्र धाम बंगाल की खाड़ी एवं अरब के सागर के संगम स्थल पर स्थित है इस मंदिर की स्थापना के पीछे की कथा रामायण का से जुड़ी है पहली कथा के अनुसार जब श्री राम लक्ष्मण हनुमान और वानर सेना सहित लंका की ओर जा रहे थे तो विजय प्राप्त करने के लिए उन्होंने समुद्र के किनारे शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा की थी इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने श्रीराम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया था आशीर्वाद मिलने के साथ ही श्रीराम ने अनुरोध किया कि वे जन कल्याण के लिए सदैव इस ज्योतिर्लिंग रूप में निवास करें उनके इस प्रार्थना को भगवान शंकर ने सहर्ष स्वीकार कर लिया रामेश्वरम मंदिर से जुड़ी एक और ऐतिहासिक कथा सामने आती है रामायण के अनुसार माना जाता है कि भगवान राम जब माता सीता के साथ युद्ध करके वापस अयोध्या जा रहे थे तो उन पर ब्रहम हत्या का पाप लगने की बात कही गई इस पाप से मुक्त होने के लिए उन्हें संतो ने भगवान शिव की pratna करने की सलाह दी पंतदीप पर कुछ मंदिर ना होने के कारण भगवान राम ने पवन पुत्र हनुमान को शिव जी की मूर्ति लेकर आने को भेज दिया प्रभु राम की आज्ञा का पालन करते हुए हनुमान जी चले तो गए परंतु वापस लौटे में पूरे देर हो ऐसे माता सीता ने समुद्र के किनारे पड़ी रहती शिवलिंग का निर्माण कर दिया यह शिवलिंग बाद में रामनाथ से लाया श्रीराम ने इस शिवलिंग की श्रद्धा पूर्वक पूजा की और बाद में हनुमान जी द्वारा लाया शिवलिंग स्थापित कर दिया गया इसके अलावा रामेश्वर मंदिर का अपना एक अलग ही आकर्षण है इस मंदिर का दरिया रहा है विश्व का सबसे बड़ा गलियारा माना जाता है मंदिर के पास ही समुद्र में आज भी आधी सेतु के अवशेष दिखाई देते हैं आमतौर पर रामसेतु के नाम से जाना जाता है
तो आइए करते हैं चार धामों में से चौथे धाम की कथा जगन्नाथ पुरी धाम की(Jagannath puri dham)
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जगन्नाथ पुरी |
हम इस पोस्ट में पवित्र भारत के चार धाम के संक्षिप्त जानकारी देने की कोशिश की है इन अलग-अलग धर्मों की विस्तृत जानकारी के लिए हमारे वेबसाइट पर पोस्ट को जरूर देखें जिसका लिंग नीचे दी गई है और पोस्ट के अंत में दिया गया है इन नामों से संबंधित आपके पास भी कोई जानकारी है पोस्ट हो तो हमारे साथ कमेंट बॉक्स में जरूर साझा करें और इस पोस्ट को अपना सोशल अकाउंट में शेयर करें अपना परिवार का साथ भी शेयर जरूर करें
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