बद्रीनाथ की कहानी | The Story of Badrinath

The Story of Badrinath
The Story of Badrinath

नमस्कार दोस्तों हम जानते हैं बद्रीनाथ धाम के इतिहास के बारे में भारत के उत्तर में हिमालय की बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में बसा पवित्र धाम बद्रीनाथ समस्त हिंदू जाति के लिए परम पवित्र एवं उसने तीर्थ स्थान है हिंदू शास्त्र के अनुसार बद्रीनाथ की यात्रा के बिना सारे तीर्थ यात्रा अधूरी है यहां की यात्रा बहुत कठिन थी लेकिन अब सड़क बन जाने के कारण यहां तक पहुंचने में सुविधा हो गई है वाहनों द्वारा यहां तक पहुंचा जा सकता है धार्मिक आस्था और श्रद्धा के कारण श्रद्धालु यहां निरंतर पहुंचते रहते हैं

धार्मिक श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं बल्कि सैलानियों और प्रकृति प्रेमियों के लिए भी बद्रीनाथ एक मनोरम स्थल है हिमालय के गढ़वा क्षेत्र में समुद्र तल से लगभग 3122 मीटर ऊंचाई पर लक्ष्मण गंगा और अलकनंदा के संगम स्थल के समीप स्थित है स्थान पर कभी पैर या बद्री की बेशुमार झारिया थी इसलिए इसे बद्री मंकी कहा जाता रहा है यहां ठंडे पानी के स्रोत भी हैं शंकराचार्य के समय से इसे बद्रीनाथ कहां जाता है व्यास मुनि का जन्म हुआ उनका आश्रम भी था इसलिए व्यास को भी कहा जाता है 

इसी आधार पर मुख्यमंत्री का नाम ही बद्रीनाथ पड़ा भारतीय संत महात्माओं ने उत्तराखंड की इस धरती को देवताओं और प्रकृति का मिलन स्थान मारा है कहा जाता है कि आदि युग में नर और नारायण नेता जो भगवान राम ने द्वापर युग में वेदव्यास ने तथा कलयुग में शंकराचार्य ने बद्रीनाथ में धर्म और संस्कृति के सुदृढ़ व बौद्ध धर्म की स्थापना के बाद चीन ने भारत पर आक्रमण किया तथा बद्रीनाथ को नष्ट कर वहां स्थापित विष्णु मूर्ति को नारद कुंड में डाल दिया शंकराचार्य ने हिंदू धर्म के पुनरुत्थान के क्रम में उस प्रतिमा को स्कूल से निकालकर गुफा में स्थापित किया चंद्रवंशी गढ़वाल नरेश ने यह मंदिर निर्माण कराया उस मंदिर पर इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने सोने का शिखर चढ़ाया तभी तो यह तीर्थ भावात्मक ता का आधार बना दक्षिण की केरल के मुंदरी पाद रावल ब्राह्मण इस प्रतिमा को छू सकते हैं

 तथा जगन्नाथ पुरी उड़ीसा के तांबे के करें बद्रीनाथ में चढ़ाए बिना भारत के तीर्थ यात्रा पूरी नहीं होती है बद्री का 

आश्रम में वास करने वाले विष्णु हो जाते हैं ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी जी यहां लक्ष्मी जी भोजन पकाती है और नारायण जी पूर्व से हैं अतः सभी जाति धर्म और संप्रदाय के लोग एक पार्क में बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं यात्रा और धार्मिक दृष्टि से बद्रीनाथ का विशेष महत्व इसलिए भी है कि यह भारत का सबसे प्राचीन क्षेत्र है इसकी स्थापना सतयुग में हुई यह प्राकृतिक सुंदरता के साथ साथ आध्यात्मिक शांति मिलती है यहां पूजा अर्चना एवं दर्शन करके मानव पुनर्जन्म के बंधनों से मुक्त हो जाता है 

बद्रीनाथ में नर और नारायण धाम केतु पर्वत शिखर है इनके बीच पठारी स्थल पर यहां का मुख्य मंदिर स्थित है मंदिर की पृष्ठभूमि में ऊंची नीलकंठ की चोटी पर से ढकी हुई दृष्टिगोचर होती है बदरीनाथ विष्णु का धाम है मंदिर अलकनंदा के दाहिने तट पर स्थित है पत्थरों से बने मंदिर की ऊंचाई लगभग 15 मीटर है जिसके ऊपर तीन स्वर्ण कलश चमकते रहते हैं मंदिर नारायण पर्वत की तलहटी पर अवस्थित है इसका रंगीन पहाड़ी द्वार द्वार कहलाता है इसे सुंदरता एवं भव्यता देखने योग्य है 

मुख्य मंदिर के दोहा के प्रथम भाग में गरुड़ हनुमान और लक्ष्मी जी के छोटे-छोटे मंदिर स्थापित है यह मंदिर प्रांगण के अंदर ही चारों ओर स्थित है दूसरे भाग में श्री बद्रीनारायण अर्थात विष्णु जी की काले पत्थर से निर्मित प्रतिमा है इनके मस्तक पर एक बड़ा हीरा जड़ा हुआ है इन के अगल-बगल में नर नारायण कुटीर उद्योग एवं नारद की मूर्तियां स्थापित है यही मुख्य बेदी है जिसकी पूजा अर्चना एवं दर्शन करके मानव पुनर्जन्म के बंधनों से छूट जाता है इसी प्रकार की जानकारियों के लिए हमारा वेबसाइट पर विजिट करें