कथकली नृत्य इतिहास, महत्व Kathakali Dance in Hindi
कथकली नृत्य इतिहास, महत्व Kathakali Dance in Hindi |
कथकली नृत्य - विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक बार बहुत सांस्कृतिक अनुभवों की एक सुंदर चित्र वाली प्रस्तुत करता है इन्हें नेताओं की वजह से यहां कला कई रूपों में विकसित हुई है हमारे देश में बहुत सी नृत्य शैलियां है लेकिन आज हम आपको जिस नृत्य शैली के बारे में बताने जा रहे हैं उसका नाम कथकली नृत्य शैली है
कथकली किस शास्त्रीय नृत्य शैली है जिसका मतलब होता है नित्य नाटिका अर्थात किसी भी नाटक किया कहानी को प्रस्तुत करते हुए नृत्य करना है नशेड़ी महाभारत रामायण वह धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है यह नृत्य आमतौर पर पुरुषों के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है लेकिन आजकल महिलाएं भी इस नृत्य शैली को प्रस्तुत करने लगी हैं कथकली नृत्य दक्षिण व पश्चिम राज्य का एक प्रसिद्ध नृत्य यह भारत का अतिथियों से किया गया मेकअप और वेशभूषा लोगों को आकर्षित करती है
ऐसा माना जाता है कि किस नृत्य की उत्पत्ति लगभग 17वीं शताब्दी में हुई थी कहा जाता है कि आर्यन और द्रविड़ सभ्यता के साथ ही इस नृत्य का उदय हुआ कथकली नृत्य 3 कलाओं से मिलकर बना है अभिनय नृत्य और संगीत इन तीनों के समायोजन से ही यह महत्वपूर्ण होता है इस नृत्य को मौका भी ने भी कहा जाता है क्योंकि इसमें नृत्य करने वाला कुछ गाता यह बोलता नहीं है नर्तक अपने चेहरे के भाव हाथों की मुद्राओं से नित्य का अभिनय करता है यह एक अलग ही तरह का नृत्य है इस नृत्य में भाव और अभिनय का मिश्रण पाया जाता है इस नृत्य में चेहरे के हावभाव को दिखाना बहुत कठिन कार्य है चेहरे की मांसपेशियों के द्वारा हाव भाव को दर्शाया जाता है
इन्हीं भावों पर पूरा नृत्य निर्भर करता है कलात्मक तरीके संगठित अभिनय को प्रस्तुत करता है चेहरे से आने वाले भाव संगीत के लाए को दर्शाते हैं पिंगला नामक यंत्र के साथ गाने की तैयारी की जाती है इस नृत्य में कई अन्य यंत्र में शामिल होते हैं जिंदा और मदालम एक ढोल होता है जिसका आकार बिल्ला कार होता है इसकी आवाज तेज होती है मदालम यंत्र मृदंग की तरह ही होता है परंपराओं के आधार पर कहा गया है कि कथकली नृत्य में लगभग एक सौ एक शास्त्रीय कथकली कहानियां है कुछ प्रसिद्ध कहानियां नल चरितम अर्थात महाभारत से ली गई कहानी है दुर्योधन वध कल्याणसौगांधीकम कीचक वध कीर्तन काम सप्तम आदि है यह नृत्य रात में प्रस्तुत किया जाता है जो सूर्य उगने से पहले तक चलता है इस नृत्य को प्रदर्शित करने के लिए नर्तक को एकाग्रता कुशलता और शारीरिक सहनशक्ति की बहुत जरूरत होती है यह नृत्य केरल की प्राचीन मार्शल आर्ट गैलरी प्रयोग पर आधारित है
यह नृत्य सीखने के लिए नर्तक को बहुत मेहनत करनी पड़ती है और आंखों के द्वारा हाव-भाव कैसे प्रदर्शित करना है इसके लिए विशेष अभ्यास की जरूरत पड़ती है इसमें 24 मुद्राओं को प्रदर्शित किया जाता है विशेष रूप से नव रस को चेहरे के हाव-भाव से दिखाया जाता है जोकि अत्यंत कठिन कार्य है इस मित्र को संगीतमय बनाने के लिए दो संगीतकार होते हैं
जिससे वह नहीं और दूसरे को छेदी कहा जाता है दोनों की अलग-अलग भूमिका है इस नृत्य के लिए अधिकतर पुरुष से महिला की भूमिका प्रस्तुत करते हैं लेकिन अब महिलाएं भी शामिल होने लगी है इस नृत्य के गानों के लिए मणिप्रावलम भाषा का उपयोग किया जाता है यह भाषा संस्कृत और तमिल का मिश्रण है नृत्य की वेशभूषा बिल्कुल अलग है जो नृत्य की कलात्मकता को दर्शाता है परिधान उभरा हुआ होता है चेहरे की सजा के लिए बहुत समय लगता है कल की वेशभूषा को पांच भागों में विभक्त किया गया है जैसे पंचायती करी दाढ़ी और मृतक का मुकुट अत्यंत आकर्षक होता है कथकली नृत्य में प्रयुक्त आभूषण कुछ अलग ही होते हैं
आंखों का मेकअप बहुत ही आकर्षक और अद्वितीय होता है मृतक का श्रंगार करने के लिए अनुभवी कलाकार होते हैं परिधान के रूप में सफेद रंग की विशेष स्कर्ट नोमा पोशाक होती है जिसे पहनाने के लिए कम से कम 2 से 3 लोगों की आवश्यकता पड़ती है चेहरे को हरे रंग से रंगा जाता है क्योंकि यह प्रभावशाली रंग होता है और सात्विक होने का गुण दर्शाता है और सफेद रंग से बाहर की तरफ फैली हुई आकृति बनाई जाती है होठों को लाल रंग से आकार दिया जाता है माथे पर तिलक के लिए पीले और लाल रंग की आकृतियां बनाई जाती है 18 वीं शताब्दी में चप्पल रिंगटोन पुत्री ने कथकली को नए तरीके से परिचय कराया इस बीच कई सारे बदलाव भैया ए वास्तव में यह नृत्य अद्भुत होते हुए एक अलग कला से परिचय कराता है
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